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तुम्हें कल की कोई चिन्ता नहीं है / ओमप्रकाश यती
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डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 18 अप्रैल 2010 का अवतरण
तुम्हें कल की कोई चिन्ता नहीं है
तुम्हारी आँख में सपना नहीं है।
ग़लत है ग़ैर कहना ही किसी को
कोई भी शख्स जब अपना नहीं है।
सभी को मिल गया है साथ ग़म का
यहाँ अब कोई भी तनहा नहीं है।
बँधी हैं हर किसी के हाथ घड़ियाँ
पकड़ में एक भी लम्हा नहीं है।
मेरी मंज़िल उठाकर दूर रख दो
अभी तो पाँव में छाला नहीं है।