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तुम्हें कौन प्यार करता है / हिमांशु पाण्डेय

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हे प्रेम-विग्रह !
एक द्वन्द्व है अन्तर्मन में,
दूर न करोगे ?

मेरी चेतना के प्रस्थान-बिन्दु पर
आकर विराजो, स्नेहसिक्त !
कि अनमनेपन से निकलकर मैं जान सकूँ
कि तुम्हें प्यार कौन करता है ?

क्या वह जो अपने प्राणों की वेदी पर
प्रतिष्ठित करता है तुम्हारी मूर्ति,
या वह जो तुम्हारी प्राप्ति के लिये
उजालों और परछाइयों की दुर्गम राह छानता है ;

क्या वह जो गुपचुप अपने में गुम होकर
स्मरण की गहराइयों में तुमसे मिलता है,
या वह जो तुम्हारे प्रेम-गीत के गान से
जगती का अन्तर्मन झकझोर देता है ।

कौन प्यार करता है तुम्हें ?
तुम्हें कौन प्यार करता है ?