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अस्वीकरण
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तुम्हें जब कभी / निज़ार क़ब्बानी
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06:43, 16 मई 2010
जैसे कि इस क्षण मैं
कर रहा हूँ कविता के जल से तुम्हें स्नात
और कविता के आभूषणों से ही से कर रहा हूँ तुम्हारा
श्रृंगार।
शृंगार।
अगर ऐसा हो कभी
अनिल जनविजय
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