भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम्हें जब कभी / निज़ार क़ब्बानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:रूसी भाषा]]
+
[[Category:अरबी भाषा]]
 
<Poem>
 
<Poem>
 
जब भी कभी
 
जब भी कभी

12:15, 16 मई 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: निज़ार क़ब्बानी  » तुम्हें जब कभी

जब भी कभी
तुम्हें मिल जाय वह पुरुष
जो परिवर्तित कर दे
तुम्हारे अंग- प्रत्यंग को कविता में।
वह जो कविता में गूँथ दे
तुम्हारी केशराशि का एक-एक केश।

जब तुम पा जाओ कोई ऐसा
ऐसा प्रवीण कोई ऐसा निपुण
जैसे कि इस क्षण मैं
कर रहा हूँ कविता के जल से तुम्हें स्नात
और कविता के आभूषणों से ही से कर रहा हूँ तुम्हारा श्रृंगार।

अगर ऐसा हो कभी
तो मान लेना मेरी बात
अगर सचमुच ऐसा हो कभी
मान रखना मेरे अनुनय का
तुम चल देना उसी के साथ बेझिझक निस्संकोच।

महत्वपूर्ण यह नहीं है
कि तुम मेरी हो सकीं अथवा नहीं
महत्वपूर्ण यह है
कि तुम्हें होना है कविता का पर्याय।


अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह