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तुम्हें पूजता था दिया वो बुझा दूँ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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तुम्हें पूजता था दिया वो बुझा दूँ
तुम्हारे बिना भी ये दुनिया बसा दूँ

सुनो इश्क़ में अब यही चाहती हूँ
मुझे तुम भुलाओ तुम्हें मैं भुला दूँ

अग़र हो लकीरें तिरे नाम की तो
यही आरजू अब इन्हें मैं मिटा दूँ

कभी तू मिला था इबादत के बदले
चलो मैं तुम्हें अब ख़ुदा सा छुपा दूँ

तुम्हारी नज़र जो टिकी है अभी तक
मेरे चेहरे से उसे मैं हटा दूँ

मिले जो समंदर मुझे राह में तो
तिरी याद को मैं नदी सा बहा दूँ

गुमां था मुझे के यही रस्म होगी
वफ़ा ही मिलेगी अग़र मैं वफ़ा दूँ

कभी चाहती हूँ कि मैं भी तुम्हें अब
दिया है जो तुमने वही तो सिला दूँ

बड़ी चाहना है मुझे आजकल के
मिले कोइ तुमसा तो तुमसे मिला दूँ