भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:56, 12 अगस्त 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है
फिर एक आह भरने को जी चाहता है

बड़े बेरहम हो, बड़े बेवफ़ा हो
करें क्या जो मरने को जी चाहता है!

कहें क्या तुम्हें! ज़िन्दगी देनेवाले!
कि जी से गुज़रने को जी चाहता है

मना है जिधर ये निगाहें उठाना
उधर पाँव धरने को जी चाहता है

खिले हैं गुलाब आज होँठों पे उनके
कोइ ज़ुर्म करने को जी चाहता है