भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हें मैं क्या दूँ दीनानाथ! / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 20 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग कामोद, तीन ताल 29.6.1974

तुम्हें मैं क्या दूँ दीनानाथ!
तुम्हें छोड़ मेरा न कहीं कुछ, बदलूँ किसके साथ॥
सब कुछ तो है श्याम! तुम्हारा, मेरे तुम ही नाथ!
पर इस सब कुछ को अपनाकर मैं हो गया अनाथ॥1॥
इसे सँभालो तुम ही प्यारे! चहूँ न इसका साथ।
बस अपना अपनापन देकर कर दो मुझे सनाथ॥2॥
बिना मूल्य मैं दास तुम्हारा, सदा-सदा तुम नाथ।
पाऊँ प्रीति-प्रसादी सन्तत, गाऊँ तव गुन-गाथ॥3॥
नाता यही निभाओ प्यारे! रखो माथ निज हाथ।
अनुभव होता रहे निरन्तर श्याम! तुम्हारा साथ॥4॥

शब्दार्थ
<references/>