http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B0_%E0%A4%86%E0%A4%93_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%9C_%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8&feed=atom&action=historyतुम अगर आओ / अनुज लुगुन - अवतरण इतिहास2024-03-28T19:50:40Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B0_%E0%A4%86%E0%A4%93_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%9C_%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8&diff=183331&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया2014-09-28T13:15:40Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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<poem><br />
अगर तुम आना चाहो<br />
तो आओ<br />
एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए<br />
भोर के सूरज की तरह<br />
पहाड़ियों पर<br />
और लीप दो<br />
उजासपन के गोबर।<br />
अगर तुम आना चाहो<br />
तो आओ<br />
हमारे जंगलों में<br />
वसंत के बयार की तरह<br />
और सूखी डंठलियों पर भर दो<br />
नई कोंपलें।<br />
अगर तुम आना चाहो<br />
तो आओ<br />
हमारी जमीन पर<br />
बादलों की बेबसी की तरह<br />
और हरी कर जाओ<br />
हमारी कोख।<br />
अगर तुम आना चाहो<br />
तो आओ<br />
हमारी नदियों पर<br />
पंडुक की तरह<br />
और अपनी चोंच से<br />
इसकी धार पर संगीत दे जाओ।<br />
अगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ<br />
तुम्हारे आने पर<br />
तो -<br />
पहाड़ों से उतर आएँगे<br />
हमारे देवता<br />
आग बरसाने के लिए<br />
हमारे पुरखों की पवित्र आत्माएँ<br />
उठ खड़ी होंगी<br />
अपने सीने का पत्थर<br />
हाथ में लिए हुए।<br />
अगर ऐसा भी कुछ नहीं हुआ<br />
तो हमारी माताओं और बहनों को भी<br />
सामने खड़े पाओगे<br />
तीर-धनुष और कुल्हाड़ी लिए हुए<br />
हमारी कलाओं में नहीं है<br />
कुछ भी धोखे से हासिल करना।<br />
</poem></div>Sharda suman