भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम अभी कुछ देर ठहरो / ज्ञान प्रकाश आकुल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 1 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश आकुल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं धरातल पर घड़ी भर पाँव धरना चाहता हूँ,
कल्पनाओं !
तुम अभी कुछ देर ठहरो ।

मैं बहुत ही थक गया हूँ
दूर से मुझको अकेले लौटकर आना पड़ा है,
मैं जिधर से जा चुका था
क्या बताऊँ क्यों मुझे फिर से उधर आना पड़ा है।
कुछ समय तक मैं स्वयं से बात करना चाहता हूँ,
व्यस्तताओं !
तुम अभी कुछ देर ठहरो ।

मैं जिन्हें अपना चुका था
आज मैं यह जान पाया वे नहीं मेरे हुए हैं
जो दबे थे खो चुके थे
वे अभाषित प्रश्न मुझको आज तक घेरे हुए हैं।
रिक्तियों को मैं किसी भी भाँति भरना चाहता हूँ
वर्जनाओं !
तुम अभी कुछ देर ठहरो ।

मैं अटल कर्त्तव्य पथ पर
छोड़कर फिर आ गया हूँ अनमने अधिकार सारे,
मौन मुझको रुच रहा है
अब नहीं सुनने कभी भी प्रश्न या उत्तर तुम्हारे।
पत्थरों के बीच से अब मैं गुज़रना चाहता हूँ,
देवताओं !
तुम अभी कुछ देर ठहरो ।