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तुम आओगे / संतोष श्रीवास्तव

जब कभी तुम आओगे
सरहद पार
दुश्मन की कैद से
छूटकर
तब दिखाउंगी तुम्हें
 वे सब चीजें
जिन में खोजती थी तुम्हें

वे रातें तो वापस नहीं आ सकती
लेकिन उनकी यादें
जो मैंने सहेज रक्खी हैं,
तकिये के गीलेपन में
बिस्तर की चादर पर पड़ीं
करवटों की सलवटों में

उन कोरे कागज़ों पर
जिन पर लिखते लिखते
मिट जाते थे शब्द
तुम्हारी याद में बहे
मेरे आंसुओ से

इससे पहले कि मै
तब्दील हो जाऊँ
राख की ढेरी में
आ जाओ न तुम
 एक बार।