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तुम उस घोड़े की तरह हो / वार्सन शियर / राजेश चन्द्र

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तुम उस घोड़े की तरह हो
जो दौड़ना चाहता है अकेला
और उसकी कोशिश रहती है
कि वह थाम ले तुम्हारी लगाम को

तुलना करता है तुम्हारी
उस असम्भव राजमार्ग से
जो ले जाता है एक जलते हुए घर के मुहाने तक

कहता है कि चकमा दे रही हो तुम उसे
कि वह न कभी छोड़कर जाएगा तुम्हें
न भूल पाएगा
उसे कुछ नहीं चाहिए तुम्हारे सिवाए
तुमने चक्कर में डाल दिया है उसे, असह्य हो तुम

हर एक औरत तुमसे पहले या बाद की भी
ढल गई है तुम्हारे नाम में
तुमने भर दिया उसका मुख
दुखते हैं उसके दाँत स्वाद की स्मृति से
उसका जिस्म सिर्फ़ एक लम्बी परछाईं है
तुम्हारी तलाश करती हुई

लेकिन तुम हमेशा हद से ज़्यादा सँजीदा रही
उसे चाहने के बेशर्म और कुरबानी से भरे
अपने ही तरीके़ से ख़ौफ़ज़दा

वह तुम्हें बताता है कि
कोई भी आदमी उस तरह रह नहीं सकता
जिस तरह रहता आया है
तुम्हारे दिलो-दिमाग़ में वह

और तुमने कोशिश की थी बदलने की, की थी न?
बन्द कर ली थी अपनी ज़बान और भी ज़्यादा
कोशिश की थी कि बन सको नरमदिल
ख़ूबसूरत
थोड़ी कम चँचल, थोड़ी कम चालाक़

लेकिन सोते वक़्त भी तुम
साफ़ महसूस कर सकती थी कि
तुमसे दूर जा रहा है वह
सफ़र करता हुआ अपने ही ख़यालों में

तो तुम प्यार किसे करना चाहती थी
उसके विभाजित और आज़ाद दिमाग से?

तुम नहीं बना सकती कोई घर इनसानों के बाहर
किसी न किसी को पहले ही
बता देना चाहिए था यह तुम्हें
कि अगर वह चाहता है चले जाना
तो फिर ज़रूर चले जाने दो उसे

तुम ख़ौफ़नाक हो
और अजीब और ख़ूबसूरत भी
कुछ ऐसी जिसे प्यार करना
हो भी नहीं सकता हर किसी के वश में।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र