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तुम और गणित / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

तुम जब भी मिलीं,
मुझे गणित-सी मिलीं।
तुम्हे हल करने में कई बार
भूल जाता हूँ कुछ जोड़ना और घटाना।
तुम्हारी जटिल संक्रियाओं में,
असिद्ध ही रह जाता है हमारा प्रमेय।

मैं चाहता हूँ कि मिलो तो,
हिंदी-सी मिलो।
मैं लिख सकूँ तुम्हे,
पढ़ने के लिए।