Last modified on 19 जनवरी 2021, at 20:03

तुम गीत तो सुनाओ / नरेन्द्र दीपक

तुम गीत तो सुनाओ, वातावरण बनेगा,
ज़्ारा दर्द को जगाओ, वातावरण बनेगा।

माना कि सारे श्रोता मुर्दा से लग रहे हैं
जीवन का गीत गाओ वातावरण बनेगा।

छुप-छुप के दोषारोपण हैं व्यर्थ दर्षकों पर
तुम सामने तो आओ वातावरण बनेगा।

तय है कि आचरण से हम सब गिरे हुए हैं
तुम खुद को तो उठाओ वातावरण बनेगा।

चारों तरफ है फैली नफ़रत की सियाह चादर
दिया प्यार का जलाओ वातावरण बनेगा।

लोगों के प्राण डोलें महफ़िल में जान आये
कोई गीत गुनगुनाओ वातावरण बनेगा।

महफ़िल को खल रहा है महफ़िल में कमी जिनकी
महफ़िल में उनको लाओ वातावरण बनेगा।

कुछ लग रहा है ऐसा बुझने लगा उजाला
‘दीपक’ की ग़ज़ल गाओ वातावरण बनेगा।