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तुम गै़र से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ / मीर 'तस्कीन' देहलवी
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तुम गै़र से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ
गर इस वफ़ा पे कोई कहे बे-वफ़ा मुझे
सच है तू बद-गुमाँ है समझता है कुछ का कुछ
बोसा न लेना था मेरे आईने का मुझे
इंसाफ़ कर ख़राब न फिरता मैं दर-ब-दर
मिलती जो तेरे गोश-ए-ख़ातिर में जा मुझे
उस बुत की मैं दिखाऊँगा तस्वीर वाइज़ो
फिर क्या कहेगा दावर-ए-रोज़-जज़ा मुझे
क्यूँ उन से वक़्त-ए-क़त्ल किया शिकवा ग़ैर का
करनी थी मग़फ़िरत ही की अपनी दुआ मुझे
पूछे जो तुझ से कोई के ‘तस्कीं’ से क्यूँ मिला
कह दीजो हाल देख के रहम आ गया मुझे