भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम चलना ज़रूर / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन का निचोड़
अभी तक का, मेरा
बस इतना-सा है
जीने का पर्याय बस चलते रहना हैं
मंजि़लें मिले तो ठीक
ना मिले तो भी सही
हमें रुकना नहीं हैं
यात्रा का अनुभव ज़रूरी है...मंजि़ल नहीं

हदबंदियों को तोड़ बेख़ौफ चलना
दुनिया कि उठती उँगलियों से बेपरवाह हो चलना
मौसमों से, बदलते लोगों से बेफि़क्र हो चलना
कहीं-सुनी बातों को दर-किनार कर चलना

तुम चलोगे, तो कई और चलेंगे
तुम उठोगे, तो कई और उठेंगे
तुम बदलोगे, तो कई और बदलेंगे
तुम्हें देख, तुम्हारी परिस्थितियाँ भी बदलेंगी

कई अनुभव मिलेंगे
उन नए अनुभव को अपने साथ जोड़ते चलना
कुछ उसूल नए बनेंगे
उन्हें भी अपने अंदर कहीं जगह दे, चलना
ख़ुद पर यक़ीन रखना
हिम्मत रखना
अपनी ख़ुशियों से, अपने गमों से
अपने सपनों को सजा के चलना
अपने दिल में हौसलों की लौ जला के चलना
पर चलना तुम
तुम ज़रूर चलना