भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम प्रथम ही रहना / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:57, 4 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हें जाने की हठ है; मैं निःशब्द,
                मेरी श्वासों में तेरी वही सुगंध शेष है।
तुमने पलों में भ्रम तोड़ डाले सब,
               मेरा अब भी वचन- अनुबंध विशेष है।
तूने कंकड़ बताया जिन्हें राह का,
              मेरे लिए अक्षत बना- तेरा वो विद्वेष है।
अपमान सहना और कुछ न कहना,
              केवल यही निश्छल प्रेम का संदेश है।
तुम प्रथम ही रहना, मैं अंतिम सही,
             सम्मोहन का यों तो सुन्दर ये उपदेश है।
'कविता' विलग हो नहीं जी सकेगी,
             रस, छंद, अनुप्रास का ही परिवेश है।