तुम बिन !
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !
घर पीछे तालाब
उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आई हो
प्रात गन्ध की बेर;
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !
झर-झर हरसिंगार झरते हैं
पवन पुलक के भार
हार गूँथ लूँ, किन्तु
करूँ किस वेणी का शृँगार;
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !