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तुम मुरझाओ नहीं / पंकज चौधरी

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तुम मुरझाओ नहीं

तुम्‍हें कोई नहीं रौंद सकता
कोई नहीं कुचल सकता

भला दूब को कोई रौंद पाया है आजतक
उसे कोई कुचल पाया है अबतक

उसे लाख रौंदो
लाख कुचलो
वह उग ही आती है
धरती का सीना फाड़कर
उद्भिज की तरह

तुम बिलकुल वही दूब हो
जिसकी जड़ें बहुत-बहुत गहरी होती हैं
पाताल तक

शैतानों की टापें तो हवा-हवाई होती हैं!