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"तुम मेरा ही रूप हो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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न  सिन्धु  अँधियार  भी , उमड़ रही जलधार।
 
न  सिन्धु  अँधियार  भी , उमड़ रही जलधार।
 
मैं  एकाकी कर गहो, छोड़ो मत मझधार।
 
मैं  एकाकी कर गहो, छोड़ो मत मझधार।
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तुझमें ही अटके हुए,मेरे पापी प्राण।
 
तुझमें ही अटके हुए,मेरे पापी प्राण।
 
कभी छोड़ तुम चल दिए,मुझको मिले न त्राण।
 
कभी छोड़ तुम चल दिए,मुझको मिले न त्राण।
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165
 
दीप जलेगा प्रेम का, घनी रात  या प्रात।
 
दीप जलेगा प्रेम का, घनी रात  या प्रात।
 
साँसें जब तक तन बसी,मैं हूँ तेरे साथ।।
 
साँसें जब तक तन बसी,मैं हूँ तेरे साथ।।
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166
 
नीरव कोने में बसा,कहता  बारम्बार
 
नीरव कोने में बसा,कहता  बारम्बार
 
आँसू पी लूँ नैन के,मैं हूँ तेरा प्यार।
 
आँसू पी लूँ नैन के,मैं हूँ तेरा प्यार।
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167
 
फूलों पर  तितली कभी, तनिक न होती भार।
 
फूलों पर  तितली कभी, तनिक न होती भार।
लेकर चल  दूँ मैं तुम्हें, ,सीमाओं के पार।
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लेकर चल  दूँ मैं तुम्हें, सीमाओं के पार।
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168
 
दर्द कभी मैं दूँ तुम्हें,तो मुझको धिक्कार।
 
दर्द कभी मैं दूँ तुम्हें,तो मुझको धिक्कार।
 
तुम तो प्राणों में बसे ,बिछड़ो ना इस बार।
 
तुम तो प्राणों में बसे ,बिछड़ो ना इस बार।
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सुनकर वाणी आपकी,मन को मिला सुकून।
 
सुनकर वाणी आपकी,मन को मिला सुकून।
 
तुम ही मेरी आरज़ू, केवल तुम्हीं जुनून ॥
 
तुम ही मेरी आरज़ू, केवल तुम्हीं जुनून ॥
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170
 
ईश्वर ने मुझको दिया,दुर्गम पथ पर साथ।
 
ईश्वर ने मुझको दिया,दुर्गम पथ पर साथ।
 
मुड़कर देखा तुम मिले  ,पकड़े मेरा हाथ।।
 
मुड़कर देखा तुम मिले  ,पकड़े मेरा हाथ।।
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171
 
रोम- रोम में गूँजता,गीत बना गुंजार।
 
रोम- रोम में गूँजता,गीत बना गुंजार।
 
जीवन के हर मोड़  पर,तुम्हीं प्यार का सार।
 
जीवन के हर मोड़  पर,तुम्हीं प्यार का सार।
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172
 
हरदम साँसें कह रहीं, तुम हो मन के पास।
 
हरदम साँसें कह रहीं, तुम हो मन के पास।
तुम मेरा ही रूप हो,तुम मेरा विश्वास।
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'''तुम मेरा ही रूप हो,तुम मेरा विश्वास।'''
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बन जाए  जब जीभ ही, दोधारी तलवार।
 
बन जाए  जब जीभ ही, दोधारी तलवार।
 
ज़हर बिना मरते  रहे, हम तो  लाखों बार ॥
 
ज़हर बिना मरते  रहे, हम तो  लाखों बार ॥
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174
 
तन-मन सब आहत हुआ, रोज़ झेलते तीर ।
 
तन-मन सब आहत हुआ, रोज़ झेलते तीर ।
 
  मौन बनी जीवित  रही, हरदम मन की  पीर ॥
 
  मौन बनी जीवित  रही, हरदम मन की  पीर ॥
102
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175
 
सोचा था कल  भोर में,गूँजेंगे कुछ गान ।
 
सोचा था कल  भोर में,गूँजेंगे कुछ गान ।
 
नींद  लूट तकरार ने  , मन को किया मसान॥
 
नींद  लूट तकरार ने  , मन को किया मसान॥
  
 
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21:23, 14 मई 2019 का अवतरण

163
न सिन्धु अँधियार भी , उमड़ रही जलधार।
मैं एकाकी कर गहो, छोड़ो मत मझधार।
164
तुझमें ही अटके हुए,मेरे पापी प्राण।
कभी छोड़ तुम चल दिए,मुझको मिले न त्राण।
165
दीप जलेगा प्रेम का, घनी रात या प्रात।
साँसें जब तक तन बसी,मैं हूँ तेरे साथ।।
166
नीरव कोने में बसा,कहता बारम्बार
आँसू पी लूँ नैन के,मैं हूँ तेरा प्यार।
167
फूलों पर तितली कभी, तनिक न होती भार।
लेकर चल दूँ मैं तुम्हें, सीमाओं के पार।
168
दर्द कभी मैं दूँ तुम्हें,तो मुझको धिक्कार।
तुम तो प्राणों में बसे ,बिछड़ो ना इस बार।
169
सुनकर वाणी आपकी,मन को मिला सुकून।
तुम ही मेरी आरज़ू, केवल तुम्हीं जुनून ॥
170
ईश्वर ने मुझको दिया,दुर्गम पथ पर साथ।
मुड़कर देखा तुम मिले ,पकड़े मेरा हाथ।।
171
रोम- रोम में गूँजता,गीत बना गुंजार।
जीवन के हर मोड़ पर,तुम्हीं प्यार का सार।
172
हरदम साँसें कह रहीं, तुम हो मन के पास।
तुम मेरा ही रूप हो,तुम मेरा विश्वास।
173
बन जाए जब जीभ ही, दोधारी तलवार।
ज़हर बिना मरते रहे, हम तो लाखों बार ॥
174
तन-मन सब आहत हुआ, रोज़ झेलते तीर ।
 मौन बनी जीवित रही, हरदम मन की पीर ॥
175
सोचा था कल भोर में,गूँजेंगे कुछ गान ।
नींद लूट तकरार ने , मन को किया मसान॥