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तुम साँस के सिक्के उछालती रहना / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रक्खूँगा

तुम धमनियों में धीमा लहू बन जाना
मैं टूटी धड़कनों को सीने में चिपकाऊँगा

तुम आँख के आँगन में छुपा लेना मुझे
मैं अपनी उम्र सारी खेलकर गुज़ारूँगा

पीली धूप से जब तुम पकाओगी मौसम
लम्हा तोड़कर मैं लम्बा छाता बुन लूँगा

सूखी बारिश से जब टूटेगा प्यासा पानी
तुम्हारे होंठ के बारे में फिर से सोचूँगा

गीली रेत में जिस तरह बूँद बसती है
तुम्हारे जिस्म में अपना वजूद खोजूँगा

तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रखूँगा