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तुम साथ होते हो तो / संतोष श्रीवास्तव

तुम साथ होते हो तो मैं जान लेती हूँ चोंच में दाना लेकर घौंसले के पास लौटती चिडिया कि अधीरता
बासी फूलों का झर कर
लम्बी घास में समा जाना और घास के सिरों पर अटकी शबनम का किरणों की छुअन से सतरंगी हो जाना
तुम साथ होते हो तो पूरब और पश्चिम
भ्रमित नहीं करते ढलते सूरज और उगते चाँद के
एक जैसे पथ को

तुम साथ होते हो तो
समझ में आ जाती है समँदर की अकुलाहट बार-बार तट से टकराती लहरों की बेचैनी

और सीप के खुले मुँह में टपकी स्वाति की बूँद का मोती बन जाने को
पल भर थरथराना फिर स्थिर हो जाना
मेरे लिये कहीं
कुछ भी नहीं रह जाता
जिसे मैं मालूम न कर सकी तुम्हारे साथ होने पर