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तुम / सरोज मिश्र

अनुपम हो तुम अदभुत हो तुम अभिनव रचना नई नवेली!
छू भर लो तुम जिसको,उसकी हो जाये रंगीन हथेली!

तुम हो कौन सजनि अलबेली!
तुम हो कौन सजनि अलबेली!

चंदा मांगे रूप तुम्हारा,पूनम मांगे अल्हड़ पन,
साँझ डूबती कहे बूँद भर,मुझको भी दे दो यौवन!
तुम्हें देख पर्वत झुक जाये
 नदी छोड़ दे पथ अपना,
पतझर में ही लगे देखने,बाग़ बहारों का सपना!

तुम ही सीधा अर्थ उमर का यदि जीवन है कठिन पहेली!
छू भर लो तुम जिसको उसकी हो जाये रंगीन हथेली!

तुम हो कौन सजनि अलबेली!
तुम हो कौन सजनि अलबेली!

तितली के पंखों पर चुनकर,तुमने ही सब रंग लिखे,
मधुकर मन की तरुणाई के बेढब सारे ढंग लिखे!
तो मुझको भी अवसर देना,प्रेम ग्रन्थ कुछ लिख जायें,
उन्हें पढूं मैं वचन सरीखा,अधर तुम्हारे दुहरायें!

ठहरे जल में भी तो हलचल कर देती एक लहर अकेली!
छू भर लो तुम जिसको उसकी हो जाये रंगीन हथेली!

तुम हो कौन सजनि अलबेली।
तुम हो कौन सजनि अलबेली।