भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूने प्यार दिया, इसलिए मैं भी तुझे प्यार देता हूँ / वाल्ट ह्विटमैन / लाल्टू

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 1 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाल्ट ह्विटमैन |अनुवादक=लाल्टू |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं देह का कवि हूँ और आत्मा का कवि,
स्वर्ग के सुख मेरे पास हैं और नर्क की पीड़ाएँ मेरे साथ,
सुखों को मैं बुनता हूँ और उन्हें बढ़ाता हूँ,
दुःखों कों नई भाषा में बदल देता हूँ।

मैं उतना ही स्त्री का कवि हूँ जितना कि पुरुष का,
और मैं कहता हूँ — स्त्री होना पुरुष होने जैसा ही गरिमामय है,
मैं कहता हूँ — मनुष्य की माँ से बड़ा कुछ नहीं होता।
मैं संवृद्धि या गौरव के गीत गाता हूँ,
बहुत हो चुका बचना बचाना,
मैं दिखलाता हूँ कि आकार महज परिवर्तन है।

तुम क्या औरों से आगे बढ़ गए हो? राष्ट्रपति हो क्या?
यह छोटी बातें हैं, सब आते ही आते रहेंगे और गुज़र जाएँगे।
मैं वह हूँ जो नाजुक और बढ़ती रातों के साथ चलता हूँ,
रात के शिथिल आगोश में धरती और समन्दर को मैं पुकारता हूँ।

और पास आ, ओ खुले सीने वाली रात – और पास आ
जिजीविषा बढ़ाती चुम्बकीय रात!
दक्खिनी हवाओं वाली रात – थोड़े से बड़े तारों वाली रात!
अब तक जगी रात – ऐ नंगी पागल गर्मियों की रात।

ऐ ठण्डी साँसों वाली विशाल धरती, मुस्करा!
ऊँघते और पिघलते पेड़ों वाली धरती!
बीते सूर्यास्त वाली धरती — धुन्ध भरे पर्वत शिखरों वाली धरती!
काँच-सी चमकती हलकी नीली पूर्णिमा की चाँदनी वाली धरती!
नदी के ज्वार की चमक और छाया वाली धरती!

मेरे लिए साफ़ चमक उठते
धूमिल बादलों वाली धरती!
सुदूर को आगोश में लेने वाली धरती
खिलते सेबों की गाढ़ी सुगन्ध वाली धरती!

मुस्करा कि तेरा आशिक आया है।
ऐ अखूट दानी !
तूने मुझे प्यार दिया है — इसलिए मैं भी तुझे प्यार देता हूँ!
ओ अवाच्य अगाध प्रेम!

अंग्रेज़ी से अनुवाद : लाल्टू