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तू एक आईनागर है संभल के चल बाबा / कांतिमोहन 'सोज़'

तू एक आईनागर है संभल के चल बाबा I
ये पत्थरों का नगर है संभल के चल बाबा II

क़दम क़दम पे यहां वारदात होती है
ये रौशनी का सफ़र है संभल के चल बाबा I

अंधेरी रात के तालिब को कोई ख़ौफ़ नहीं
तुझे तलाशे-सहर है संभल के चल बाबा I

नहीं है कुछ भी तेरे पास तू समझता है
तू खुद भी माल है ज़र है संभल के चल बाबा I

ये दौरे-नौ है यहां कोई बच नहीं सकता
किसी की तुझपे नज़र है संभल के चल बाबा I

यहां डकैत सियासत में दख्ल रखते हैं
बड़े-बड़ों पे असर है संभल के चल बाबा I

धुआं धुआं सी ये बस्ती हुआं हुआं बाज़ार
इसी में सोज़ का घर है संभल के चल बाबा II