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तू कभी आ मुझे मिल ज़रा देख जी भर कर / शमशाद इलाही अंसारी
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तू कभी आ मुझे मिल ज़रा देख जी भर कर
मेरे मन में समा जा मेरे तन में उतर कर।
तेरी मंज़िल भी यहीं तेरा आग़ाज़ भी यहीं
बस कोई परदा-सा उठा है कोई परदा गिरा कर।
तेरे लबों के रंग से ये आसमाँ भी अब सुर्ख है
तू इस शाम को और दहका दे मेरे सीने में उतर कर।
"शम्स" तेरे वुजूद का उससे कोई नाता है पुराना
मुझमें ही है वो पेवस्त मेरा हिस्सा सा बनकर।
रचनाकाल : 28.08.2002