भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तू कान का कच्चा है... / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा, बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= अमजद हैदराबादी
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,
 
तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,
 
 
बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।
 
बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।
 
 
गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?
 
गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?
 
 
‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥
 
‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥
 
  
 
मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,
 
मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,
 
 
मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।
 
मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।
 
 
वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,
 
वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,
 
 
‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥
 
‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥
 
 
 
  
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}
 +
</Poem>

23:14, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,
बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।
गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?
‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥

मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,
मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।
वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,
‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥

शब्दार्थ
<references/>