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"तू कान का कच्चा है... / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर
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तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा, | तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा, | ||
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बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा। | बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा। | ||
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गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक? | गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक? | ||
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‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥ | ‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥ | ||
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मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा, | मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा, | ||
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मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा। | मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा। | ||
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वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र, | वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र, | ||
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‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥ | ‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥ | ||
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23:14, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,
बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।
गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?
‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥
मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,
मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।
वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,
‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥
शब्दार्थ
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