भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू कारवाँ के साथ में सबको मिला के चल / प्रभा दीक्षित

Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 15 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभा दीक्षित }} Category:ग़ज़ल <Poem> तू कारवाँ के साथ म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू कारवाँ के साथ में सबको मिला के चल
इक रोशनी का फूल दिलों में खिला के चल।

ये रात तेरे सर पर भी मंडराएगी ज़रूर
जुगनू की तरह जलते हुए झिलमिला के चल।

कुछ मुश्किलें पहाड-सी आएंगी राह में
दरियाँ की तरह हँसते हुए खिलखिला के चल।

चलने के लिए शर्त है मंज़िल की राह में
सारे जहाँ के बोझ को सर पे उठा के चल।

हर दर्द से गुज़रा है मेरे इश्क का ज़मीर
फटते हुए दामन को ज़रा सिल सिला के चल।

शायद ग़ज़ल में तेरी 'प्रभा' वो असर नहीं
बस्ती की बेहतरी में ख़ुद का घर जला के चल।