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तू जो मुझसे जुदा नहीं होता / गौतम राजरिशी

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तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
मैं ख़ुदा से ख़फ़ा नहीं होता

ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तो इतना तू बड़ा नहीं होता

सच की ख़ातिर न खोलता मुख गर
सर ये मेरा कटा नहीं होता

चांद मिलता न राह में उस रोज़
इश्क का हादसा नहीं होता

पूछते रहते हाल-चाल अगर
फ़ासला यूँ बढ़ा नहीं होता

छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता

होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता

कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता