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तू जो साथ नहीं मेरे तो जहाँ छोड़ जायेंगे / कबीर शुक्ला

तू जो साथ नहीं मेरे तो जहाँ छोड़ जायेंगे।
छत ही नहीं है अगर तो मकाँ छोड़ जायेंगे।
 
होशे-अनादिल हूँ हँसी-ए-बर्गे-नबात खातिर,
सोजे-पिनहाँ लेकर आशियाँ छोड़ जायेंगे।
 
ग़िला शिकवा शिकायत इश्क में ममनूअ है,
चश्मे-पुरआब ले इश्क बेजुबाँ छोड़ जायेंगे।
 
अब्सारे-निगार में दिखेगी हमेशा शरहे-इश्क,
रुख़्सारे-यार पर तबस्सुमे-पिनहाँ छोड़ जायेंगे।
 
रह लेंगे हम दर-ब-दर हू-ब-हू खानाबदोश,
तेरे हक में जमीं-ओ-आशमाँ छोड़ जायेंगे।
 
ये सुराब ये इशवागारे ये लौउ-ओ-ख़फ़गी,
तेरी सरमस्तियों का हन जिन्दाँ छोड़ जायेंगे।
 
दराज़ ख़ाकदाँ से शब-ए-अलम में हम तन्हा,
जाने-इज्तेराब लेकर दिलो-जाँ छोड़ जायेंगे।