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तू सुख़न-ए-फ़हम है कुछ हौसला-अफ़्ज़ाई कर / ताहिर वारसी

तू सुख़न-ए-फ़हम है कुछ हौसला-अफ़्ज़ाई कर
शेर अच्छा है तो फिर खुल के पज़ीराई कर

यूँ सर-ए-राह मुझे देख के अनजान न बन
तू शनासा है तो कुछ पास शनासाई कर

यूसुफ़ी-हुस्न है तक़्दीस-ए-नुबुव्वत का अमीं
ऐ ज़ुलेख़ा तू कहीं और ज़ुलेख़ाई कर

कोरे काग़ज़ पे भी अल्फ़ाज़ तड़प कर बोलें
अपने अशआर में पैदा वो तवानाई कर

ठेस लगते ही उधड़ जाएँगे बख़िए ‘ताहिर’
लाख तू दामन-ए-उम्मीद की तुरपाई कर