Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 21:15

तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए / ज्ञान प्रकाश विवेक

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:15, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए
वो भी आएगा कभी हाथ मिलाने के लिए

दर्द आएगा दबे पाँव पुरोहित बन कर
दिल के मंदिर में कोई शंख बजाने के लिए

बूँद सूरज के पसीने की उठा लाया हूँ
ज़ुल्मतों की कोई तहरीर मिटाने के लिए

यज्ञ, उपवास, निवेदन किए लाखों हमने
एक रूठे हुए बादल को मनाने के लिए

चुटकुलेबाज़ की क्या ख़ूब अदाकारी थी
रोटियाँ लाया था भूखों को हँसाने के लिए