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तृप्ति-अतृप्ति / शिवराम

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आदर
उम्मीद से सौ गुना अधिक
प्यार
चाहत से बहुत-बहुत कम
यही तृप्ति-अतृप्ति
अपनी ज़िंदगी का दम-खम
पल-पल को जिया
विष भी-अमृत भी
यूँ नहीं
तो यूँ पिया
असंतुष्ट भी हूँ
संतुष्ट भी
जो पाना चाहा नहीं मिला
जो करना चाहा कर लिया