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तेज़ बारिश हो या हल्की, भीग जाएँगे ज़रूर / ज्ञान प्रकाश विवेक

तेज़ बारिश हो या हल्की भीग जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर

दर्द की शिद्दत से जब बेहाल होंगे दोस्तो
तब भी अपने आपको हम गुदगुदाएँगे ज़रूर

इस सदी ने ज़ब्त कर ली हैं जो नज़्में दर्द की
देखना उनको हमारे ज़ख़्म गाएँगे ज़रूर

बुलबुलों की ज़िन्दगी का है यही बस फ़ल्सफ़ा
टूटने से पेशतर वो मुस्कुराएँगे ज़रूर

आसमानों की बुलंदी का जिन्हें कुछ इल्म है
एक दिन उन पक्षियों को घर बुलाएँगे ज़रूर.