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तेज़ हवा के इक झोंके ने जब बादल का नाम लिखा / गौतम राजरिशी

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तेज़ हवा के इक झोंके ने जब बादल का नाम लिखा
धरती के सीने पर बारिश ने पायल का नाम लिखा
 
मैं तो यूँ ही सोच रहा था तुझको बैठा कमरे में
घर के दर-दीवारों पर किसने संदल का नाम लिखा
 
चुप-चुप बहते दरिया से उकता कर ज़िद्दी लहरों ने
बेबस साहिल के हर टुकड़े पर हलचल का नाम लिखा
 
कितना अरसा बीत चुका है शह्र हुये आबाद यहाँ
जाने क्यूँ अब भी नक्शे पर है जंगल का नाम लिखा
 
तेरी गोरी रंगत से तपती दुनिया को छाँव मिली
पलकों की कोरों पर तू ने जब काजल का नाम लिखा
 
बँगला आलीशान बनाया तुमने बस्ती में तो क्या
हमने भी अपनी झुग्गी पर राजमहल का नाम लिखा
 
आते-जाते अपनी गली में एक नज़र तो देखा कर
चप्पे-चप्पे पर है आखिर किस पागल का नाम लिखा
 
शह्र की धूप भरी सड़कों पर गाँव का रस्ता ध्यान आया
यादों की पगडंडी ने बूढ़े पीपल का नाम लिखा
 
ढलते सूरज की आँखों में आँसू देखा शाम ने जब
फौरन आज के स्याह वरक पर उसने कल का नाम लिखा





(त्रैमासिक नई ग़ज़ल, अप्रैल-जून 2013)