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तेरह भजन (पत्नी का गीत) / बैर्तोल्त ब्रेष्त / नीलाभ

1. कभी कभी शाम के समय नदी किनारे झाड़ियों के अन्धेरे सीने में मुझे फिर उसका
चेहरा दिखाई देता है। उस औरत का चेहरा जिसे मैं प्यार करता था। मेरी बीवी। जो अब नहीं है ।

2. यह बरसों पहले की बात है और बाज़ वक्त मुझे उसकी कोई याद नहीं रहती
जो कभी सब कुछ थी, मगर सब कुछ बीत जाता है ।

3. और वह मेरे भीतर थी जैसे मंगोलिया के मैदानों पर नन्हीं ज़ूनिपर की झाड़ी,
धुनषाकार, हल्के पीले आकाश और गहरी उदासी के साथ

4. नदी किनारे की एक काली-सी झोंपड़ी हमारा घर थी। मच्छर अक्सर उसकी गोरी
देह को काटते और मैं सात बार अख़बार पढ़ता या कहता — ‘तुम्हारे बालों का
रंग मिट्टी जैसा है’ या — ‘तुम हृदयहीन हो ।’

5. लेकिन एक दिन जब मैं झोंपड़ी में अपनी कमीज़ धो रहा था, वह दरवाज़े तक
गई और उसने मेरी तरफ देखा बाहर जाने की इच्छा से ।

6. और उसने, जो उसे थक जाने की हद तक पीटता था, कहा — ‘प्राणेश्वरी ।’

7. और वह, जिसने कहा था, ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’ — उसे बाहर ले गया
और उसने मुस्कराते हुए आकाश को देखकर मौसम की तारीफ़ की और उससे हाथ मिलाया ।

8. अब जबकि वह बाहर खुली हवा में थी और झोंपड़ी में उदासी छा गई
थी, उसने दरवाज़ा बन्द किया और अख़बार खोल कर बैठ गया ।

9. तब से मैंने उसे फिर नहीं देखा। अपने पीछे वह, बस, एक हल्की-सी
चीख़ छोड़ गई, जब सुबह दरवाजे पर आकर उसने बन्द पाया ।

10. अब झोंपड़ी ढह चुकी है और मेरे सीने में अख़बार ठुँसे हुए हैं और मैं
शामों को नदी किनारे झाड़ियों के अन्धेरे विवर में लेटा रहता हूँ और याद करता हूँ ।

11 हवा के बालों में घास की महक है और पानी ईश्वर से
शान्ति की अन्तहीन गुहार लगाता है और मेरी ज़बान पर हरदम रहता है एक कड़वा स्वाद ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ