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तेरा आँचल / विजय कुमार पंत

 याद आता है
वो तेरे तार -तार आँचल मे
मुंह छुपा कर लेट जाना
वो तेरा
मेरे बालों को सहलाना
वो खेत और खलिहान
तेरा टूट - टूट कर
काम करना
सूप मे उड़ते धान
मक्की की रोटी मैं जो तेरा स्नेह
घुल जाता था
मेरे लिए नमक भी
मधु सा हो जाता था
याद है वो जूट के थैले को
सर पर ओढ़ कर
बारिश से बचाना
एक पांव मे जूता ,
एक मे चप्पल
पहना कर मुझे स्कूल छोड़ जाना
हमारी इच्छाओ के प्रश्न
और गाँव के मेले का आना
वो तेरा बक्से को उलट -पुलट कर
खंगालना, तीन पैसे पाना
जिनको बंद हुए
बीत चुका था जमाना
फिर भी उनसे तू हमारे लिए
गुब्बारे लाना चाहती थी
आज महसूस कर पता हूँ
तब तू कितना
लाचार हो जाती थी
माँ..
मैंने आज बहुत कुछ पाया है
ये तेरी मेहनत तेरा प्रताप और
तेरे आंचल की ही माया है
माँ मैं बहुत कुछ पा चुका
अब कुछ खोना चाहता हूँ
तेरे उसी तार -तार , नीले
जगह जगह बेतरतीब सिले
आँचल मे
फिर मुंह छुपाकर चैन से
सोना चाहता हूँ