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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
तेरा दर छोड़ के जाने का कभी नाम न लूँ
यों पिला दे कि कहीं और सुबह-शाम न लूँ
 
मुझको नस-नस के चटकने का हो रहा है गुमान
हुक्म तेरा है कि दम भर कहीं आराम न लूँ
 
यों न लहरा मेरी आँखों में सुनहला आँचल
मैं हूँ मदहोश, कहीं बढ़के इसे थाम न लूँ!
 
तू मेरे प्यार की धड़कन तो समझता है ज़रूर
मैं भले ही कभी होठों से तेरा नाम न लूँ
 
यह तो बतला कि खिलाये हैं भला क्यों ये गुलाब
है अगर जिद ये तेरी, इनसे कोई काम न लूँ !
<poem>
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