भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं मगर कुछ अप...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 +
|संग्रह= नयी ग़ज़लें / गुलाब खंडेलवाल
 +
}}
 +
[[Category: ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
 
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 +
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
  
मगर कुछ अपने भी प्यार के गम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
+
कभी तो पहुँचेंगीं तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें  
 
+
 
+
कभी तो पहुँचेगी तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें  
+
 
+
 
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
  
 
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
 
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
 
+
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
+
 
+
  
 
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को  
 
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को  
 
 
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
  
 
+
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफ़ा जवानी  
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफा जवानी  
+
 
+
 
हसीन रंगों का हम वो मौसम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
हसीन रंगों का हम वो मौसम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
 
  
 
कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह कलम की जादूगरी तुम्हारी!
 
कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह कलम की जादूगरी तुम्हारी!
 
 
गुलाब! तुमने कहा था हरदम, 'छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं'
 
गुलाब! तुमने कहा था हरदम, 'छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं'
 +
<poem>

01:16, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं

कभी तो पहुँचेंगीं तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं

बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं

जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं

भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफ़ा जवानी
हसीन रंगों का हम वो मौसम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं

कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह कलम की जादूगरी तुम्हारी!
गुलाब! तुमने कहा था हरदम, 'छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं'