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तेरी कैसे गुज़र होगी तेरी कैसे बसर होगी / शमशाद इलाही अंसारी

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तेरी कैसे गुज़र होगी तेरी कैसे बसर होगी
दिल के यही फ़साने सुनाने कभी तो आ।

तेरे छोटे-छोटे किस्से तेरी मिसरी जैसी बातें
अपनी इन्ही अदाओं से रिझाने मुझे कभी तो आ।

बस मुझे तुझ से प्यार है, तुझे मुझ से प्यार है
इसी प्यार के बहाने मिलने मिलाने कभी तो आ।

तेरी ख़ुशियाँ भी देखूँ तेरी मस्तियाँ भी देखूँ
ले मै रूठा हूँ तुझसे अब मनाने मुझे कभी तो आ।

तेरे आँसुओं से पहले अपनी जाँ निसार कर दूँ
मेरी रुह को बदन से मिलाने कभी तो आ।

तेरी राह तकते-तकते वो दीवाना सर हुआ है
इसकी आँखें बन्द कर दे इसे दफ़नाने कभी तो आ।

मौहब्बत करने वालों का "शम्स" अंजाम है ये पुराना
सदियों पुरानी इस गुत्थी को सुलझाने कभी तो आ।


रचनाकाल : 30.08.2002