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तेरी चाहत भूल गयी है जीवन को महकाना अब / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

तेरी चाहत भूल गयी है जीवन को महकाना अब
मेरी भी इन तस्वीरों ने छोड़ दिया शरमाना अब

जो इक बात बयां होती थी तेरी-मेरी नज़रों से
कितना मुश्क़िल है उसको यूँ लफ्ज़ों में समझाना अब

मेरी गलियों से अब उसने आना-जाना छोड़ दिया
छोड़ दिया है मैंने भी हर आहट पे घबराना अब

दिल की कब्र बनाकर मैं जिस दिन से जीना सीखी हूँ
भूल गयी हूँ उस दिन से ही चाहत पे मर जाना अब

उसने जब से फूलों से सजना-संवरना छोड़ दिया
बागीचे में कम दिखता है कलियों का मुरझाना अब

 याद तुम्हारी आये तो मैं नज़्में लिखने लगती हूँ
आता है मुझको भी देखो यादों को बहलाना अब

साथ थे जब तो हम दोनों की एक कहानी होती थी
दोनों का है अपना-अपना रूहानी अफ़साना अब