Last modified on 11 जून 2013, at 07:42

तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई / 'क़ाएम' चाँदपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:42, 11 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='क़ाएम' चाँदपुरी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
प्यारे ये नहव ओ सर्फ ये गुफ्तार है कोई

ठोकर में हर कदम की तड़पते हैं दिल कई
ज़ालिक इधर तो देख ये रफ्तार है कोई

जूँ शाख़-ए-गुल है फ्रिक में मेरी शिकस्त की
मेरा गर उस चमन में हवा-दार है कोई

ज़ालिम ख़बर तो ले कहीं ‘काएम’ ही ये न हो
नालान ओ मुज़्तरिब पस-ए-दीवार है कोई