Last modified on 26 मार्च 2015, at 12:21

तेरी जुस्तजू में भटकता रहा हूँ / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 26 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र सिंह काफ़िर |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरी जुस्तजू में भटकता रहा हूँ
तजर्रुद में अपने तड़पता रहा हूँ

सियाह रातों में भी मैं बनके सितारा
तुझे देखने को चमकता रहा हूँ

कभी तूने होंठों से चूमी थी गर्दन
उसी से अभी तक महकता रहा हूँ

तुम्हारे लबों पर तबस्सुम चढ़ी जब
परिंदों के जैसे चहकता रहा हूँ

दुआओं में मांगी थी तेरी ही सूरत
मैं रमजान में रोजे रखता रहा हूँ