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तेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल / शाह 'नसीर'

तेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
तेरी आँखों का हूँ कुश्‍ता रख दे दो नर्गिस के फूल

एक दिन हो जाऊँगा तेरे गले का हार मैं
सूँघने को मत लिया कर हाथ में जिस तिस के फूल

बिस्तर-ए-गुल पर जो तू ने करवटें लीं रात को
इत्र-आगीं हो गए ऐ गुल-बदन सब पिस के फूल

कुछ ख़बर भी है तुझे चल फ़ातिहा के वास्ते
आज हैं ऐ शोख़ तेरे आशिक़-ए-मुफ़लिस के फूल

और ही कुछ रंग है सीने के दाग़ों का मिरे
इस रविश के हैं कहाँ तेरे सिपर पर मिस के फूल

क्या नवा-संजी करें ऐ हम-सफ़ीरान-ए-चमन
आ गई फ़ज़्ल-ए-ख़िजाँ गुलशन से सारे खिसके फूल

हैं मह ओ ख़ुर्शीद जो शाम ओ सहर तुझ पर से वार
सीम ओ ज़र के फेंकते हैं बीच में मजलिस के फूल

किस ने सिखलाई है तुझ को ये रविश रफ़्तार की
मिट गए कालीं के जो तेरे क़दम से घिस के फूल

फुलझड़ी से कम नहीं मिज़गाँ-ए-अश्‍क-अफ़शां तिरी
मोतिया के देखना झड़ते है मुँह से इस के फूल

रंग-ए-ख़ूब-ओ-ज़िश्‍त में क्यूँ फ़र्क़ समझे है ‘नसीर’
ख़ार भी तू है उसी का हैं बनाए जिस के फूल