भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है / अफ़ज़ल गौहर राव
Kavita Kosh से
तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है
इस सराए में कोई आता कोई जाता है
तू ने क्या दिल की जगह रक्खा है पत्थर मुझ में
ग़म से भर जाऊँ भी तो रोना नहीं आता है
वो मिरे इश्क़ की गहराई समझता ही नहीं
रास्ता दूर तलक जाए तो बल खाता है
फिर भला किस के लिए इतनी चमकती है ये रेत
कोई दरिया भी नहीं है जो कहीं जाता है
उस के हाथों में वो परकार है जिस से ‘गौहर’
घूम जाती है ज़मीं आसमाँ चकराता है