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तेरी मर्ज़ी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

गले से आज लगाया है तेरी याद ने मुझको
सन्नाटों की चीख से भर गया है कमरा
बिखर गई है मेरी नींद यूँ कतरा-कतरा
मैं चुन रहा हूँ नींद के टुकड़ों को अभी
अपने खून से चिपकाऊँगा फिर पलकों पर
ताकि तुम आ सकोगी फिर से मेरी आँखों में
तुम्हारा लम्स महकता है मेरी साँसों में
मेरी रूह पर अब भी है उंगलियों के निशान
कि तेरी याद में मैनें सजा रखी है दुकान
आओ मुझे खरीद लो फिर जो तेरी मर्ज़ी