तेरे अलम को ज़बीं से लगा लिया मैं ने
लगा के जेसे ख़ज़ाने को पा लिया मैं ने
दरीचा दिल का मेरे वा हुआ उसी लम्हा
तुम्हारे नाम को दिल में बसा लिया मैं ने
जो आज सुब्ह तिलावत की सूरअ-ए-यासीं
नसीब से दिल-क़ुआन पा लिया मैं ने
हुई उदास तो ताहा का विर्द करने लगी
सुरूर इश्क़ का दिल में जगा लिया मैं ने
तमाम रात पढ़ी सूरअ-ए-मुज़म्मिल जब
सहर के नूर से दिल को सजा लिया मैं ने