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तेरे कूचे में बिस्मिल ज़िन्दगानी और क्या करते / कांतिमोहन 'सोज़'

तेरे कूचे में बिस्मिल ज़िन्दगानी और क्या करते I
मुकम्मल हो गई अपनी कहानी और क्या करते II

मुयस्सर थीं कई चीज़ें हमारे ख़ून से बढ़कर,
तेरा दामन था लेकिन गुलफ़िशानी और क्या करते I

हमारी जान लेने के लिए वो ख़त ही काफ़ी था,
फिर उसके साथ पैग़ामे-ज़बानी और क्या करते I

उसे कजरौ कहा और उठके महफ़िल से चले आए
वो फिर अपना था उससे बदज़बानी और क्या करते I

ब-कफ़ ख़ंजर थे क़ातिल फिर भी ये गर्दन रही बाँकी,
जफ़ा की इससे बेहतर मदहख्वानी और क्या करते I

फसुर्दा फूल भिजवाने को वो तौहीन क्यूँ समझा,
शिकस्ता दिल की आख़िर तर्जुमानी और क्या करते I

नहीं यारो नहीं था सोज़ अपनी जान का दुश्मन,
वो था मग़रूर उससे छेड़खानी और क्या करते II