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तेरे प्यार में जाने कितने रिश्ते टूट गये
हमें समझकर आवारा घर वाले रूठ गये
मगर इश्क़ का मज़ा वही जाने जो इश्क़ करे
मिला वो सुख मड़ई में दौलतखाने छूट गये
 
बड़े हमारे खैरख़़्वाह वो बनकर आये हैं
फिर ये क्यों लगता है करम हमारे फूट गये
 
हमें तो बस हर चीज़ में तेरा हुस्न दिखाई दे
पता नहीं चल पाया यह भी विष कब घूट गये
 
अगर वो रेशम के होते तो बात ही होती और
मगर वो धागे कच्चे थे जो पल में टूट गये
</poem>
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