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तेरे प्यार में हर सितम है गवारा / डी. एम. मिश्र

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तेरे प्यार में हर सितम है गवारा
नहीं ग़़म है मुझको हो नुक़्सां हमारा

अभी तक सफ़र में था बिल्कुल अकेला
मगर अब किसी ने मुझे भी पुकारा

यही एक छोटी सी बस जुस्तजू है
तुम्हीं फिर मिलो गर जनम हो दुबारा

अगर तुम न होते तो मैं भी न होता
कठिन जंग में भी कभी मैं न हारा

मेरे पाँव कैसे फिसल सकते हैं जब
तेरी बाँह का मिल गया हो सहारा

प्रथम बार डर -डर के कैसे मिले थे
नहीं भूल पाता हूँ मैं वो नजा़रा

खुशी में किसी को भी साथी बना लो
ग़मों का है रिश्ता हमारा तुम्हारा