भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे माथे पे सलवट है, नज़र में बन्दगी कम है / सुल्‍तान अहमद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:48, 28 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुल्‍तान अहमद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे माथे पे सलवट है, नज़र में बन्दगी कम है,
मुझे लगता है तेरी जिन्दगी अब तो बची कम है।

अभी साँसें भी हैं ज़िन्दा, अभी आँखों में सपने हैं,
बहुत है बोझ सीने पर मगर शायद अभी कम है।

कभी लगता है दुनिया हो गई है एक जंगल-सी,
कभी लगता है मेरी आँख में कुछ रोशनी कम है।

वही दाने, वही पानी, वही पिंजरा, हटाओ भी,
मिले हैं सुख बहुत सारे मगर अब ताज़गी कम है।

सभी बहरे नहीं हैं, दस्तकें देकर तो आख़िर देख,
खुलेंगे दर कई लेकिन तुझे उम्मीद ही कम है।

अभी भी याद आते हैं फफोले पाँव के उसको,
अभी सीने में शायद राहरौ के बेख़ुदी कम है।